VM_poetic collections – साहज़ार – creation 16 – Reality check – Mistaken identity & illusion of being celebrity

Background: It’s been a while since I have shared some poetic creation. Was driving back home in car and the mind was in thinking mode as playing on YouTube audio was a conversation between Gulzaar Saab and Javed Saab, basically a leg pull of Javed Saab by Gulzaar saab

I always enjoy the attention, rather I love to be an attention seeker and many a times people ask me about the character I’ve created – how could I give that a Demi god status and then this is what came out.

Sharing here with you my latest creation titled – Mistaken identity & illusion of being Celebrity

था वो एक दौर गुफ़्तगू का

और तो और मुलाक़ात का भी (II)

करते थे जब बातें हम बेख़बर अनजान 

वक़्त से भी और एक दूसरे से भी शायद (II)

था जो हुआ क़ायम एक रिश्ता बीच हमारे, 

लगा था हमें है वो महज़ फ़लसफ़ा एक (II)

(लकीरों में लिखा गया था जो करते आधो आध हमें

थी मगर वो तो लक़ीरें आड़ी तिरछी 

जो मिलाती रही बारम बार हमे)

समझ ना पाए नास्तिक हम लड़ते रहे जंग ख़ुद से,   

ख़ुदा से और कर दिया खत्म अफ़साना वो ख़ूबसूरत (II)

कहते ज़बान में साहिर साब की (जिसे)

वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना…

उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ दे के छोड़ना अच्छा (II)

बरसों बाद मिली वो मुझको फिर एक बार 

अन्दाज़ पुराने में, हुआ दौर भी शुरू गुफ़्तगू का (फिर से

हुआ करती थी बातें जो (कभी सिर्फ़) मेरी (हो गई) थी 

अब हमारी, लिए ऑटोग्राफ़ मेरे और ली सेल्फ़ी (भी) साथ में (मेरे) (II)

हुआ अहसास होने का कामयाब मुझे करते हस्ताक्षर, 

लगा भी मुझे आख़िर हो गया काबिल (अब मैं भी) (II)

फिर गिरा ज़मीन पे मैं जो लिया नाम उसने

और कहा मैंने बस इतना है नहीं अफ़सोस 

फिर हारने का तुझसे जो हारा हूँ मैं बारम बार (II)

कम्बख़्त हार गया था इस बार मैं और किसी से 

जो लिया था नाम उसने था वो किरदार मेरा (बनाया) (II)

तराशने को वजूद जिसका गुज़ार दी थी वो एक उम्र मैंने,

(दे उसे शिनाख़्त कुछ मेरे हिस्से की ही तो) (II)

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